



निष्पक्ष समाचार- प्रदेश में अधिकारियों-कर्मचारियों के तबादले की तिथि को 31 जुलाई से बढ़ाकर 7 अगस्त कर दिया गया है ट्रांसफर पॉलिसी में परिवर्तन होने के बाद काफी मात्रा में आवेदन भी संबंधित विभागों में पहुंच रहे है। इस बीच एक वायरल वीडियो ने उच्च शिक्षा विभाग के उन नवचयनित सहायक प्राध्यापकों को चिंता में डाल दिया होगा जिन्होंने परिवीक्षा अवधि में ही ट्रांसफर लेने के प्रयास किये होंगे क्योकिं वायरल वीडियो में ऐसा बताया जा रहा है कि ऐसे लोग वर्तमान स्थानांतरण नीति से पूर्णतः वंचित रहेंगे।
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वायरल वीडियो म.प्र.शासन के उच्च शिक्षा मंत्री का बताया जा रहा है जो यह कहते सुनाई दे रहे कि “स्थानांतरण नीति तय की गई है इस नीति के अंतर्गत जो भी विभागों के परिवीक्षा अवधि के अभ्यर्थी होंगे उनको प्रायः जो असिस्टेंट प्रोफेसर ग्रुप में हमारे अपने विभागों में भी है ऐसे लोग वर्तमान की स्थानांतरण नीति से पूर्णतः वंचित रहने वाले है क्योकिं दो वर्ष की परिवीक्षा अवधि में किसी भी असिस्टेंट प्रोफेसर का ट्रांसफर नहीं करना है ये उसका सर्विस के समय ऐफिडेविट दिया गया है मै आपके माध्यम से अपील करना चाहूंगा कि ये ऐसे लोग जो भी जिन्होंने आवेदन स्थानांतरण के दिये है वे अपनी अपनी परिवीक्षा अवधि पूरा कर लें विभाग की सहानुभूति उनके साथ है जैसे ही परिवीक्षा समाप्त होगी उसके बाद योग्य निर्णय लिया जा सकेगा”।
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सोचने वाली बात यह है कि ऐसी नोबत ही क्यों आई कि एक जिम्मेदार को सार्वजनिक रूप से बयान देना पड़ा, जानकारी के अनुसार कुछ दिन पहले मीडिया में एक खबर आई थी कि नवचयनित सहायक प्राध्यापक के स्थानांतरण के लिए कुछ लोग भोपाल गए और वहां बातचीत के दौरान यह तथ्य सामने आया कि प्रार्थी परिवीक्षा अवधि में है इसलिये ट्रांसफर होने में थोड़ी कठिनाई है, लेकिन कुछ रास्ता निकालकर ट्रांसफर कर ही देंगे इसलिए पारिश्रमिक कुछ ज्यादा हो सकता है। इसके बाद गली गलियारों में चर्चा तेजी से फैली और यह सूची अटक गई।
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इस पूरे मामले के बाद अनेक प्रश्न उत्पन्न होते है जैसे कि जब परिवीक्षा अवधि वाले अधिकारी-कर्मचारी का ट्रांसफर नहीं होता है तो फिर इसका प्रयास कैसे संभव हुआ..? जब पड़ताल की गई तो जानकारी हासिल हुई कि सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा- 2017, जो वर्तमान में न्यायालय के अध्यधीन है इसमें कुछ चयनित अभ्यर्थियों के ट्रांसफर परिवीक्षा अवधि में ही हो गए थे जिसकी जानकारी बिरादरी वालो को लग गई, और ट्रांसफर के सपने देखने वाले बाकी अभ्यर्थियों ने भी भोपाल की ओर दौड़ लगा दी, इससे पहले की उनका स्वार्थ सिद्ध होता,मामला प्रकाश में आ गया और उनके सपने चकनाचूर हो गए।
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परंतु अब लोगों में एक कौतूहल औऱ जिज्ञासा है कि उन सहायक प्राध्यापकों का ट्रांसफर कैसे हो गया जिन्हें सरकारी सेवा में आये कुछ दिन ही हुआ..? क्या उच्च शिक्षा विभाग इतना उदार हो गया कि परीक्षा के पहले लिंक ओपन कर आवेदन ठीक करवाने औऱ सिर्फ वस्तुनिष्ठ आधारित परीक्षा लेने के बाद, सर्टिफिकेट दुरस्त करने के लिए साल भर का वक्त देने और विज्ञापन में बार-बार संशोधन करने के बाद नवचयनित सहायक प्राध्यापकों को नियमों को दरकिनार कर मनपसंद जगह भी पहुंचा रहा है! या छवि बेहतर करने उनका ट्रांसफर रद्द किया जाएगा जो परिवीक्षा अवधि में सुविधा पा गए ?
चूंकि यह परीक्षा भी अपने आप में नायाब रही क्योकि पिछले चार सालों से इसमें सुधार हो रहा है पहले आयोग और उच्च शिक्षा विभाग ने मिलकर खूब संशोधन किए बाकी खामियां कोर्ट तक पहुंच गई। अब आगे क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन आनन फानन में आयोजित औऱ नियुक्ति तक ढेरो गलतियां सामने आने के बाद भी अब तक बेदाग साबित करने के प्रयास लगातार जारी है। इस परीक्षा की जांच की मांग की सुगबुगाहट भी सामने आने लगी है देखना यह है कि अब क्या होता है..?

वरिष्ठ पत्रकार