दमोह :– जिले का एक मात्र सरकारी अस्पताल में फैली अव्यवस्था और भ्रष्टाचार की खबरें प्रकाशित करना दमोह के पत्रकारों के लिए भारी पड़ गया और डॉक्टर ने उसके खिलाफ मामला दर्ज करा दिया, अब तो हालत यह है कि जिला अस्पताल के डॉक्टर पत्रकारों से सीधे मुंह बात तक नहीं करते। डॉक्टर पत्रकारों को कवरेज तक नही करने देते जिसके लिए वह तत्कालीन कलेक्टर एस कृष्ण चैतन्य के उस आदेश का लगातार हवाला देते है जिसमे उन्होंने आम जनता को अस्पताल के भीतर वीडियो फोटोग्राफी करने की मनाही की थी।
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ताजा मामला रविवार सुबह का है, बताया जा रहा है कि जिला अस्पताल में एक मरीज के इलाज में लापरवाही के चलते परिजनों ने एक मीडिया कर्मी को फोन लगाकर समस्या बतलाई, पीड़ित की समस्या जानकर मीडिया कर्मी लवी दुबे अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टर ने उससे अभद्रता करी, मीडिया कर्मी ने बताया कि डॉक्टर आरिब खान मरीज के बुजुर्ग परिजनों से अभद्र भाषा में बात कर रहे थे, जब मैने बुजुर्ग से ऐसी भाषा में बात करने से रोका तो डॉक्टर खान ने उसके साथ भी अभद्रता की ओर झूठी रिपोर्ट दर्ज करने की धमकी दी, यही नहीं सुबह डॉक्टर आरिब खान ने पुलिस थाना जाकर मीडिया कर्मी पर गंभीर धाराओं में मामला भी दर्ज करा दिया।
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जिसके बाद प्रेस क्लब के सभी इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के लोग कलेक्टर के पास पहुंचे और अस्पताल में हो गड़बड़ी की जानकारी दी और अस्पताल प्रबंधन पर कार्रवाई करने और एफआईआर से उसका नाम हटाने की मांग की और एक ज्ञापन सौंपा।
दरअसल दमोह जिला अस्पताल के डॉक्टर अपनी तानाशाही रवैए के कारण हमेशा मीडिया की सुर्खियां बनते है। जिस कारण अब डॉक्टर मीडिया कर्मियों को देखकर ही भड़क जाते हैं। जिला अस्पताल का आलम यह है कि अगर कोई आम आदमी भी कभी अस्पताल की शिकायत सीएम हेल्प लाइन में करदे तो सभी डॉक्टर प्रशासनिक दबाव बनाकर उस शिकायतकर्ता पर भी मामला दर्ज करा देते हैं।
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बीते दिनों एक कैंसर पीड़ित मरीज के परिजन ने सीएम हेल्प लाइन पर मरीज को हो रही असुविधा की शिकायत की थी, उसके बाद अस्पताल स्टॉप ने मरीज के परिजनों के खिलाफ सरकारी काम में अवरोध और अन्य बातों को लेकर दमोह कोतवाली में मामला दर्ज कराया था। मरीज विद्या ठाकुर के पुत्र आदर्श ठाकुर का आरोप था कि सीएम हेल्प लाइन में 22182585 शिकायत दर्ज करने पर यह पुलिस रिपोर्ट दर्ज कराई है, उसका आरोप था कि अस्पताल वाले उन्हें शिकायत वापस लेने का दबाव बना रहे हैं।
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अब देखना होगा जिला अस्पताल के डॉक्टर प्रशासनिक अधिकारीयों को किस तरह दबाव में लेते हैं.? क्या फिर अपनी मनमानी करने हड़ताल का सहारा लेंगे या फिर इस्तीफा की धमकी देकर झूठे मुक़दमे दर्ज कराएँगे.? और देखने वाली बात तो यह भी होगी कि प्रशासन कितना कैसे क्या सहयोग करता है..?