



दमोह – देश में पार्टी बदलने का दौर चल रहा है बड़ी संख्या में मध्यप्रदेश विधानसभा के विधायकों ने भी अपना दल बदला, तो भला दमोह कैसे पीछे रहता। दमोह के कांग्रेस विधायक ने भी दल बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया, जिस कारण दमोह विधानसभा में उपचुनाव होने जा रहा है। जीत को लेकर सभी के अपने अपने दावे हैं। अब किसका दावा और किसकी रणनीति सटीक रहेगी, यह फैसला 02 मई को चुनाव परिणाम के बाद स्पष्ट हो जाएगा।
कांग्रेस की नीति पर भाजपा का दाव
पिछले तीन चुनाव से कांग्रेस ने सिर्फ एक ही जाति विशेष के उम्मीदवार मैदान में उतारे है और बाद में सभी ने कांग्रेस का हाथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया। राजनीति के जानकारों की माने तो कांग्रेस को पिछले दो चुनाव में हार का सामना इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि उसने दोनों बार दल बदलकर आए प्रत्याशियों को मैदान में उतारा था। अब कांग्रेस की वही गलती बीजेपी भी दोहराने वाली है। कांग्रेस की रणनीति पर चल रही बीजेपी को सफलता मिलती है या उसका हश्र भी कांग्रेस की तरह होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा।
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पार्टी से बगावत करने वालों पर भरोसा नहीं..
लोकतंत्र पर भरोसा रखने वाले दमोह के मतदाता हमेशा से ही निष्पक्ष रहे है, कभी भी प्रलोभन में नहीं आए, चुनाव रूपी महायज्ञ में समझबूझ के साथ आहूति देते रहे हैं। पिछले आंकड़े देखने से स्पष्ट होता है कि अपनी पार्टी से बगावत करने वालो पर दमोह जिले के मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया।
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मंत्री व मंत्री पुत्र को भी सिखाया सबक
कांग्रेस के पूर्व मंत्री रत्नेश सालोमन के पुत्र आदित्य हो, या भाजपा के मंत्री रहे रामकृष्ण कुसमरिया, जिले के मतदाताओं ने दल बदलकर चुनाव लडने वालों पर भरोसा नहीं जताया, इन्ही मंत्री व मंत्री पुत्र की तरह पार्टी छोड़कर चुनाव लड़ने वाले राव बृजेंद्र सिंह, ऋषि लोधी, प्रदीप खटीक की पराजय उन उम्मीदवारों को सबक है जो मतदाताओं को बेवकूफ समझते हैं।
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किसी ने बदली विंग तो किसी ने बदली विचारधारा
कांग्रेसी, भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी पर वादा खिलाफी व बिके होने का आरोप लगा रहे है। तो भाजपाई भी कांग्रेस प्रत्याशी अजय टंडन पर दल बदलू होने का आरोप लगा रहे हैं कि इन्होंने भी अर्जुन कांग्रेस के समय दल बदल लिया था, जबकि उनके समर्थन में यह कहा जाता रहा कि उन्होंने विंग बदली विचारधारा नहीं। इन्होने भी दो बार भाग्य आजमाया पर दमोह की जनता ने उन पर भरोसा नही किया।
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जितने प्रत्याशियों ने पार्टी से बगावत कर चुनावी मैदान में भाग्य आजमाया था जिन्हें मतदाताओं ने पसंद नही किया उनमे ऋषि लोधी को छोड़ सभी अंतत: पार्टी में ही वापिस चले गए। लेकिन भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी अभी तक तो मैदान में डटे है, अब देखना होगा क्या दमोह उन्हें पसंद करता है या उन्हें भी अन्य की तरह वापिस आना पड़ेगा।
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