छ़ड़ाये गये बंधक श्रमिकों के संबंध में बैठक संपन्न
दमोह : सरकार के लगभग सभी विभाग अपने यहां रोजगार के अवसर सृजित कर रहे हैं और यह दावा भी कर रहे हैं कि मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन हकीकत इसके उलट है, जिससे मजदूरों का धैर्य टूट रहा है, उन्हें पलायन ही एकमात्र उपाय दिख रहा है। पेट की ज्वाला और अपनों के भरण-पोषण की बेचैनी पलायन करने को विवश कर रही है।
कोल्हापुर जिले के बंदुर गांव के ठेकेदारों के चंगुल से 5 बच्चों सहित 14 बंधक श्रमिकों को छुड़ाकर लाई टीम की कार्यवाही रोजगार मुहैया कराने के सरकारी दावों के हकीकत बता रही हैं जिससे लगता है मनरेगा बजट का पूरा फायदा सरपंच, पंचायत सचिव अधिकारी और नेताओं के चहेते ही उठा रहे हैं।
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जिले के जिम्मेदार भले ही कार्रवाई की चेतावनी देते रहे हों, मगर, इसका धरातल पर कोई असर नहीं दिखा। अफसर पत्राचार करके कर्तव्यों को पूरा कर गए, धरातल पर हकीकत नहीं परखी। मनरेगा से जुड़े अफसरों का पूरा जोर अनियमितताओं पर कार्रवाई करने के बजाय कागजों में खुद का बचाव करने पर अधिक रहा।
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फ़िलहाल प्रशासन ने बंधक श्रमिकों का स्वास्थ्य परीक्षण कराकर सभी को उनके ग्राम आलमपुर भेजा गया है। सभी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध हो जाये, उनके बच्चों का यदि कोई टीकाकरण नहीं हुआ है तो टीकाकरण हो जाये, राशन की व्यवस्था और आयुष्मान कार्ड आदि बन जायें और श्रमिक अपना जीवन नये सिरे से प्रारंभ करें। इस आशय के निर्देश छ़ड़ाये गये बंधक श्रमिकों के संबंध में आयोजित बैठक में सीईओ जिला पंचायत एवं प्रभारी कलेक्टर अजय श्रीवास्तव ने दिये। इस मौके पर एडीशनल पुलिस अधीक्षक शिवकुमार सिंह भी मौजूद थे।
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प्रभारी कलेक्टर अजय श्रीवास्तव ने पथरिया एसडीएम और संबंधित अधिकारियों को संबंधित श्रमिकों के वैक्शीनेशन, पोषण आहार के साथ बुनियादी सुविधाओं का ध्यान रखने के निर्देश भी दिये। उन्होंने बंधक श्रमिकों को लाने वाली टीम को पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया।
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प्रभारी कलेक्टर अजय श्रीवास्तव ने जिले के नागरिकों से अपील की है कि यदि किसी को श्रमिकों के बंधक होने की कहीं से कोई जानकारी मिलती है, तो वह जिला प्रशासन और श्रम विभाग के साथ जन साहस की टीम की जानकारी में लायें। लीड बैंक अधिकारी श्री डिके को श्रमिकों के खाते खुलवाने निर्देशित किया गया ताकि श्रमिकों को सहायता राशि उनके खाते में डाली जा सके। उन्होंने बाल श्रमिकों के संबंध में विस्तृत जानकारी ली।
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अभी तो कोल्हापुर जिले से इन 14 बंधुआ मजदूरों को आज़ाद किया जा चुका है। लेकिन उनको महज आज़ाद करा देने से ही सरकार की ज़िम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती। सरकार को जानना होगा कि इन अभागों को अपना गाँव छोड़ने पर मजबूर क्यो होना पड़ा..? सरकार जिन कल्याणकारी योजनाओं का गुणगान हमेशा से करती आ रही है आखिर इन योजनाओं की जमीनी हकीकत क्या है..?
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आपको बता दें वर्ष 2020 -2021 जनपद पंचायत बटियागढ़ में सिर्फ मनरेगा से अभी तक 23 करोड़ 68 लाख रूपये खर्च किये जा चुके हैं और आलमपुर पंचायत में करीब 50 लाख रूपये इस वर्ष सिर्फ मनरेगा योजना से खर्च हुए है। विगत तीन वर्षो में इस जनपद पंचायत ने मजदूरों पर 58 करोड़ 38 लाख रूपये खर्च कर दिये अगर बात सिर्फ आलमपुर पंचायत की करे तो यहाँ भी तीन वर्षो में एक करोड़ से अधिक रूपये मनरेगा योजना खर्च हो चुके हैं जबकि यह मजदूर पंचायत से किसी भी तरह का लाभ मिलने से इंकार कर रहे हैं जिस कारण इन्हें पंचायत से पलायन करना पड़ा।
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तो क्या सारे सरकारी दावे सिर्फ कागजी हैं..? अगर सरकार के कागजी घोड़े इसी तरह दौड़ते रहे तो इन्हें फिर ठेका-मज़दूरों के रूप में नए सिरे से बंधुआ बनने के लिए दूसरे राज्यों में जाना ही होगा। आज तक आज़ाद किए गए बंधुआ मज़दूरों का इतिहास भी यही रहा है।