दमोह: प्रधान मंत्री मोदी के खास मंत्रियों में से एक प्रहलाद पटेल के लोकसभा क्षेत्र में आज भी कुछ गांव सड़क, पानी और बिजली जैसी निहायती मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। दमोह जिले की पटेरा जनपद पंचायत के ग्रामीणो का आरोप है की सरकार ने उनके गांव के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया और गांव के लोग आज भी बद से बदतर स्थिति में रहने को मजबूर हैं।
मगरा गांव के लोगों के पास ना तो सड़क है और ना ही पीने के पानी कोई व्यवस्था है। यहां के लोग आज भी पहाड़ी रास्तों से रोजाना 5 किलोमीटर का सफर करने को मजबूर हैं। ग्रामीण बताते हैं की बारिश के मौसम में उनके गांव का सम्पर्क अन्य गांव से टूट जाता है, इसलिए उन्हें चार महीनों का राशन पहले से ही लेकर रखना पड़ता हैं।
पढ़ें- 10 साल शौचालय में रहीं जूही देश के लिए जीतीं.. अब मिली सरकारी नौकरी
ग्रामीण बताते हैं की ‘गांव की समस्याओं को लेकर कई बार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से बात की लेकिन हमारी बात सुनने को कोई तैयार नहीं है। स्वच्छ पानी के लिए नल जल जैसी सुविधाएं हमारे लिए सपना बनकर रह गई हैं। गांव की ही एक गर्भवती महिला सावित्री और उसकी साथी गिरजा बाई बताती हैं की ‘नहाने और खर्च से लेकर पीने के पानी के लिए वे गांव के नाले पर ही निर्भर हैं, इसी नाले के गंदे और बदबूदार पानी से वे खाना पकाती हैं और अपनी प्यास भी बुझाती हैं।’
पढ़ें- करोड़ 37 लाख की राशि से भोपाल के पांच चौराहे विकसित होंगे
गांव में प्रवेश करते ही प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का चरमराया हुआ ढांचा नजर आता है। गांव के लोग इस ढांचे को स्कूल ही कहते हैं… और वास्तव में यह स्कूल ही है। एक ऐसा स्कूल जहां ना तो छात्रों के बैठने की कोई व्यवस्था है और ना ही पीने के पानी के लिए नल, स्कूल का किचिन वाला हिस्सा पूरी तरह से टूट चुका है, टॉयलेट में ताला लगा हुआ है और कक्षाएं बकरियां बांधने के काम आती हैं।
पढ़ें- दमोह: सीतानगर सिंचाई परियोजना के लिए अर्जित जमीन पर लगे पेड़ों का मुआवजा मांग रहे किसान
गांव के नन्नू, बबलू और राजकुमार बताते हैं की ‘गांव में स्कूल होने के बावजूद भी स्कूल कभी नहीं लगता है। पहले स्कूल में दो शिक्षक थे लेकिन अब एक ही शिक्षक है जो कभी स्कूल नहीं आते। ऐसी स्थिति में अब बच्चों की रुचि भी पढ़ाई से हटती जा रही है।’
गांव के लोग कई बार अपनी समस्याओं को लेकर उच्च अधिकारियों के पास गए लेकिन किसी अधिकारी और जनप्रतिनिधि ने गांव की सुध नहीं ली। गांव के लोग एक बार चुनाव का बहिष्कार भी कर चुके हैं लेकिन अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं हुआ।