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चुनाव से गायब होते स्थानीय मुद्दे

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धीरज जॉनसन: दमोह में उपचुनाव आते ही यह  स्पष्ट होता जा रहा है कि  बेरोजगारी, चुनावों में बड़ा मुद्दा बनने लायक नहीं है। इस विषय पर पहले ही स्वादिष्ट ढंग से  प्रेरणा दी जा रही थी। कई महीने पहले ही समझाया गया था कि छोटे छोटे काम भी एक लाभप्रद व्यवसाय हो सकता है। यह भी हो सकता है कि विपक्ष को यह विचार पसंद नहीं आया हो, कुछ ने यह काम शुरू कर लिया हो और अच्छा मुनाफा कमा रहे हों,गौर से समझें तो सरकारी चौकीदार की नौकरी किसी तरह मिल जाए इसके लिए बहुत पढ़े-लिखे लोग भी कोशिश करते है। यहां किसी भी काम को छोटा नहीं माना जाता। सोच बड़ी होना चाहिए।

चुनाव के मौसम में पिछले चुनाव के दौरान किए गए वायदों को मुद्दा बनाना गलत है ऐसी राजनीति नहीं करनी चाहिए। नेताओं को पता होता है कि राजनीति हर किसी के बस की नहीं होती अगर ऐसा होता तो वे राजनीति जैसे शुद्ध व्यवसाय में आने को कहते। उन्हें पता है कि जातिवाद, संप्रदायवाद जैसी चीज़ें कभी मुद्दा नहीं बन सकते और चुनाव हमेशा विकास के मुद्दे पर लड़ा जाता है। सरकार जानती है कि विपक्ष का कर्तव्य छिद्रान्वेषण है इस पर तनिक भी ध्यान नहीं देना चाहिए। चुनाव में उन्हीं मुद्दों को मुद्दा बनाया जाना चाहिए जो चुनाव में जीत दिलवा सकें।

कुछ ऐसा ही माहौल आजकल शहर का है जहां मेडिकल कॉलेज की स्वीकृति को लेकर वाहवाही लूटने की कोशिश जारी है जैसे कि यहां बाकी सब कुछ अच्छा चल रहा हो, जबकि भिक्षावृत्ति, बेरोजगारी, नशा, बस्ती सुधार व अन्य विषयों पर चर्चा नहीं होती, भाजपा के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता जो काफी लंबे समय से सत्ता में रहे और विभिन्न विभागों का प्रतिनिधित्व भी करते रहे पर जिले को कुछ खास नहीं मिला, पेयजल की समस्या के निदान के लिये परियोजनाओं पर अभी भी काम चल रहा है, कब तक पूर्ण होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता। विश्वविद्यालय की मांग यहाँ बहुत पहले से की जाती रही जो अब निजी क्षेत्र के रूप में यहां विकसित हो रहा है

एक समय यहां ऐसा भी आया कि इस शहर को सबसे गंदे शहर का तमगा मिला था जिसमें सुधार तो हुआ पर शहर को धूल और प्रदूषण से मुक्ति नहीं मिली, यहाँ के प्राचीन तालाबों का जीर्णोद्धार नहीं हुआ और अतिक्रमण अलग नहीं किये गए। पर चुनावों में ये मुद्दे यहां नदारत ही रहे और अब कॉंग्रेस से आयातित उम्मीदवार के सहारे भाजपा चुनाव जीतने का मन बना चुकी है जबकि इनके  कॉंग्रेस विधायक रहते हुये कोई उल्लेखनीय कार्य तो नहीं हुये और वे विरोध के कारण ही काफी कम मतों से जीते थे और अब पार्टी के प्रति समर्पण के भाव व्यक्त करते करते भाजपा में चले गए। कॉंग्रेस के पास भी कोई खास मुद्दे तो नहीं है पर भाजपा को घेरने के लिए उनके पास बहुत कुछ होगा।

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