दमोह – नट समुदाय के लोगों के जीवन में अब गोबर के दीए उजाला कर रहे हैं। ग्राम पंचायत तिंदोनी की पहल पर गांव की महिलाओं को इको फ्रेंडली रोजगार मिल गया है, जिससे यहां की महिलाएं घर बैठे ही सम्मान के साथ पर्याप्त पैसा कमा रही हैं। एक साल पहले सरपंच सोमेश गुप्ता द्वारा शुरू किए गए प्रयास को पंख लगते जा रहे हैं। बीते साल के बेहतर रिजल्ट के बाद इस बार फिर इन महिलाओं ने गोबर के दीये बनाए हैं।
यहां काम कर रही महिलाओं ने बताया कि वह एक दिन में करीब ढाई हजार दीपक बना लेती हैं। एक दीपक की कीमत 2 रुपए है, जिससे उन्हें पर्याप्त मुनाफा हो रहा है। इस कारण उनका परिवार बेहतर ढंग से चल रहा है। दमोह के अलावा भी दूसरे जिलों से लोग उनके दीए खरीदने के लिए आते हैं।
केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एवं जलशक्ति राज्यमंत्री प्रहलाद पटैल ने कहा अच्छी बात यह है कि ये गोबर से बने हुए दीपक हैं, यह जलाते समय जलेगा नहीं लेकिन पानी में डालने के 20 मिनिट बाद मट्टी में मिल जाता हैं। उन्होंने कहा पर्यावरण के लिए एक आदर्श है ही उससे भी बड़ी बात है कि माताओं-बहनों ने कमाल किया हैं, अपने जीवन में जो परिवर्तन किया एक रचनात्मक कार्य में लगी हुई है, ईश्वर से प्रार्थना है दीपावली सबकी शुभ हो लेकिन इनकी दीपावली हमें शुभ करना हैं। केन्द्रीय राज्यमंत्री पटेल ने आमजन से आग्रह करते हुए कहा इन गोबर से बनी चीजों को लोग जरूर खरीदें, वे सिर्फ कीमत नहीं देगें इनकी ईमानदारी मेहनत एवं सकारातम्क ऊर्जा समर्थन करेंगे।
मध्य प्रदेश वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन के प्रदेश अध्यक्ष एवं कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त राहुल सिंह ने कहा कि मध्य प्रदेश शासन के मुख्यमंत्री लगातार ही आत्मनिर्भर भारत अभियान को बल प्रदान कर रहे हैं और स्व सहायता समूह की महिलाओं के लिए लगातार ऋण उपलब्ध कराकर उन्हें संबल प्रदान कर रहे हैं। इसी सिलसिले में गोबर के बनाए यह दिए निश्चित ही न केवल महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं बल्कि आत्मनिर्भर भारत भी का निर्माण कर रहे हैं।
सूखे कंडे और गम पाउडर मिलाकर बनाए जाते हैं :- गोबर के दीयों को बनाने की प्रक्रिया काफी सहज है। महिलाएं गाय के गोबर के कंडे बनाती हैं। सूख जाने के बाद उन्हीं कंडों का चूरा बना लेती है। उसमें गम पाउडर मिलाकर उसे आटे की तरह तैयार कर लिया जाता है। फिर एक हाथ से चलने वाली मशीन में बने खांचों में गोबर की लोई रखकर उसे दबा दिया जाता है, जिससे दीए तैयार हो जाते हैं। इन्हें सुखाने के बाद रंग दिया जाता है। रंगों के कारण यह सुंदर दिखने लगते हैं। गोबर के दीए बनाने वाली भगवती रजक ने बताया कि पहले से अबवह बेहतर जीवन जी रही हैं। उनके परिवार की जरूरत पूरी हो रही है। उन्हें पर्याप्त मुनाफा हो रहा है, जिससे वह काफी खुश हैं।
सरपंच सोमेश गुप्ता ने बताया कि पहले यहां की ज्यादातर महिलाएं और बच्चे बेरोजगार थे। काम के लिए शहर जाते थे। उन्होंने जानकारी जुटाई तो पता चला कि गोबर के दीए बनाने की खांचानुमा मशीन आती है। इसके दीए इको फ्रेंडली होते हैं। लोग इन्हें काफी पसंद करते हैं। इसके बाद उन्होंने वह मशीन बुलाई और यहां की महिलाओं को इस काम में लगा दिया। अब काफी महिलाएं यहीं पर अपना काम करती हैं।
निताशा नट ने कहा गोबर के दिए बनाते हैं, इससे फायदा हुआ हैं, पिछली बार भी बनाये थे। उन्होंने कहा पिछली बार गोबर से भगवान लक्ष्मी एवं गणेश की मुर्तिया बनाई थी, यहां पर 20 महिलाए काम कर रही हैं, दिन भर में लगभग 2500 दीपक बनाते हैं।
दमयंती रैकवार ने कहा गोबर के दिए बनाने से हमें बहुत फायदा हो रहा हैं, इन दीपक को दमोह में बेचा जाता हैं, दिनभर में लगभग 5000-6000 दिए बिक जाते हैं।