



निष्पक्ष समाचार : महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे की ताजपोशी को राजनीति के कुछ जानकार बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं। कुछ इसे बीजेपी के लिए घाटे का सौदा कह रहे हैं। मास्टर स्ट्रोक बताने की दलील बेहद सामान्य और घिसीपिटी है। उनका मत है की बीजेपी ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर विपक्ष को चारो खाने चित कर दिया। वहीं, घाटे का सौदा बनाने वाले इसे शिवसेना को मजबूत होने की नजर से देख रहे हैं। उनका मत है कि सरकार में शिवसेना का बोलबाला रहेगा इससे महाराष्ट्र में शिवसेना मजबूत होगी। इस बीच एक धड़ा वो भी है जो यह मान बैठा है कि शिवसेना के हार्ड हिंदुत्व को बीजेपी ने हाइजैक कर लिया है। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा तो यह तक कह चुके हैं कि महाराष्ट्र देश का पहला ऐसा राज्य है जहां हिंदुत्व के नाम पर सत्ता परिवर्तन हुआ। अगर इन तमाम मतों को किनारे रख दें तो क्या शिवसेना सिर्फ हिंदुत्व के लिए जानी जाती थी.?
यह कहना एकदम मूर्खता होगी कि शिवसेना का मतलब सिर्फ हिंदुत्व से था। शिवसैनिकों के अंदर मराठी भाषा को लेकर अकाट्य प्रेम और मराठा साम्रज्य की शौर्यता को जीवंत रखने की आग ने शिवसेना को महाराष्ट्र की सबसे ताकतवर और लोकप्रिय पार्टी बनाया है। इस मामले में बीजेपी महाराष्ट्र में अंश मात्र नहीं है। लोकप्रियता मतलब विधायकों की संख्या से नहीं है। लोकप्रियता मतलब बालासाहब ठाकरे द्वारा शिव सैनिकों को पढ़ाए गए पाठ से है, जो आज भी हर शिवसैनिक के दिल मे शोले की तरह धधगते है। उनके प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा ने ही उद्धव को बगावत के दिन दिखाए हैं। यह भी सच है कि शिवसेना को शिवसैनिक ही आंख दिखा सकते हैं। राजनीतिक समीकरण या जानकार कुछ भी कहें, लेकिन वास्तविकता यही है की बीजेपी को सिर्फ शिवसेना के पथभ्रमित होने का लाभ मिला है। वह विचारधारा जो सत्ता के लोभ में राजनीति के गलियारों में भटक गई थी वह धूल साफ कर फिर से उठ खड़ी हुई है।
पूरे घटनाक्रम को देखें तो शिंदे गुट ने कभी खुद को शिवसेना से अलग नहीं माना न ही उन्होंने उद्धव ठाकरे के खिलाफ कोई टिप्पणी की। उनकी सिर्फ एक मांग थी कि बीजेपी के साथ सरकार चलाएं। शिवसेना की आधारशिला ही कांग्रेस की विचारधारा के खिलाफ है। ऐसे में कांग्रेस के साथ सरकार चलाना शिवसैनिकों को मन ही मन तोड़ रहा था। इसके अलावा सरकार में कांग्रेस और एनसीपी नेताओं का वर्चस्व और शिवसेना समर्थित विधायकों को हाशिए पर रखने की महाविकास अघाड़ी की सोच ने शिवसना के विधायकों को बागी होने पर मजबूर कर दिया। इन सब के बीच शिवसेना के बागी गुट ने अपने अंदर बालासाहब ठाकरे और शिवसेना को जीवंत रखा और बीजेपी से मिल गए।
महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी में जो भी डील हुई हो, लेकिन महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंता विस्व सरमा का कद काफी बड़ा है। आने वाले समय में इसका असर पूरे नॉर्थ-ईस्ट रीजन में देखने को मिलेगा। सरमा की कार्यकुशलता और आक्रामक छवि ने उन्हें नॉर्थ-ईस्ट रीजन के सबसे ताकतवर नेता के रूप में स्थापित किया है। कांग्रेस में रहते हुए हिमंता जो नहीं कर पा रहे थे, उसे बीजेपी में आते ही पलक झपकते कर रहे हैं। यही वजह है कि बीजेपी आलाकमान का भरोसा उन पर बढ़ता जा रहा है। बीजेपी के चाणक्य अमित शाह अब उनके जरिए नॉर्थ-ईस्ट रीजन के किसी भी राज्य में सरमा के जरिए बीजेपी के संगठन को सुरक्षित देख सकते हैं। साथ ही किसी भी गैर बीजेपी समर्थित राज्य सरकार को अस्थिर कर सकते हैं। यह बीजेपी का सरमा पर भरोसा ही था कि पार्टी आलाकमान ने शिवसेना के बागी विधायकों को गुजरात की जगह गुवाहाटी भेजने का फैसला किया। पार्टी आलाकमान के फैसले पर सरमा खरे उतरे और अपने शानदार मैनेजमेंट की बदौलत बागियों के गुट में सेंध नहीं लगने दी। महाराष्ट्र से शिवसेना समेत निर्दलीय बागी विधायकों का गुवाहाटी जाने का सिलसिला जारी रहा। अंततः महाराष्ट्र में बीजेपी वापस सत्ता में आ गई।
News Source : RAJENDRA SEN